वोटर्स को लुभाने के लिए चुनाव के समय कई पार्टियां फ्री स्कीम्स की घोषणा की जाती हैं। कई घोषणाएं ऐसी होती हैं, जो कभी पूरी नहीं होतीं पर इनके लालच में पड़कर वोटर प्रभावित हो जाता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस एनवी रमना की बेंच में सुनवाई हुई। कोर्ट ने कहा कि हम यह तय करेंगे कि चुनावी घोषणा में फ्री स्कीम्स क्या हैं? इस मामले में 22 अगस्त को अगली सुनवाई होनी है, इसके पहले सभी पक्षों को अपनी रिपोर्ट सौंपनी है।
सरकारी धन का सही इस्तेमाल हो
चीफ जस्टिस ने इस मामले में कहा कि क्या हम किसी पॉलिटिकल पार्टी को लोगों से वादा करने से नहीं रोक सकते। लेकिन सवाल इस बात का है कि सरकारी धन का किस तरह से इस्तेमाल किया जाए।
चुनाव आयोग ने परिभाषा तय करने की मांग की थी
11 अगस्त को सुनवाई से पहले चुनाव आयोग ने हलफनामा दाखिल किया था। चुनाव आयोग ने हलफनामे में कहा कि फ्री का सामान, फ्री स्कीम या फिर अवैध रूप से फ्री का सामान की कोई तय परिभाषा या पहचान नहीं है। आयोग ने आगे कहा कि देश में समय और स्थिति के अनुसार फ्री सामानों की परिभाषा बदल जाती है।
फ्री स्कीम हो जन कल्याणकारी
चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान कहा कि फ्री स्कीम्स वही बेहतर हैं जन कल्याणकारी हों। उन्होंने कहा कि मनरेगा फ्री स्कीम्स का सबसे बेहतरीन उदाहरण है। इस स्कीम्स से लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा है, मगर यह वोटर को शायद ही प्रभावित करता है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा कि मुफ्त में वाहन देने की घोषणा कल्याणकारी उपायों के रूप में देखा जा सकता है? क्या हम कह सकते हैं कि शिक्षा के लिए मुफ्त कोचिंग फ्री स्कीम्स है?
ये हैं मुफ्त के वादे
- पंजाब चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 18 साल से अधिक उम्र की सभी महिलाओं को 1,000 रुपए महीना देने का वादा किया।
- गुजरात में आम आदमी पार्टी ने बेरोजगारों को 3000 रु. महीना भत्ता, हर परिवार को फ्री बिजली का भी वादा किया।
- पंजाब में अकाली दल ने हर महिला को 2,000 रुपए देने का वादा किया।
- UP में कांग्रेस ने घरेलू महिलाओं को 2000 रु. और 12वीं की छात्राओं को स्मार्टफोन देने का वादा किया।
- UP में भाजपा ने 2 करोड़ टैबलेट देने का वादा किया था।
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